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अनपाणी ना संचा कीधा रे। नगरी ना दरवाजा दीधा रे ॥१३ सु०॥ सीहोदर अति कोपइ चढ़यउ रे। नगरी चिहुं दिस वींटी पडयउ रे ॥१४ सु०) दूत सुं मुंकइ राय संदेशा रे। चरण नमीनइ भोगवि देसा रे ॥१५ सु०।। राय कहई हुँ राज न मागु रे। चरण न लागुं सुंस न भागु रे ।।१६ सु०॥ सीहोदर सुणि अति घणुं कोप्यउ रे । इणि माहरउ वोल देखउ लोप्यउ रे ।।१७ सु० ॥ हिव हुँ एहनइ देस उतारूँ रे। जीवत झाली गरदन मारु रे ॥१८ सु०॥ इम वेऊ राय अखस्या बइठा रे। एक बाहिर एक माहि पश्ठा रे ॥१६ सु० ।। देस ए हुँतउ पहिलउ ए धूनउ रे । इण कारण हीवणा थयउ सूनउ रे ।।२० सु०॥ ए वृतांत कह्यउ मइ तुमनरे। हिव राजेसर सीख द्यउ मुझ नइ रे ।।२१ सु०॥ हुँ जाउंछ स्त्रीनई कामई रे। इमकही रामनइ मस्तक नामइ रे ।।२२ सु०॥ कडि कंदोरउ रामई दीधउ रे । सीख करीनई चाल्यउ सीधउ रे ॥२३ सु० ॥