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मई इम जाण्यु धन ते राया रे । वजूइ समकित सूधा पाया रे ॥२ सु०॥ हुँ पापीजे चोरी पइठउ रे।
आंगमी मरणउ हुँ इहीं वइठउ रे ॥३ सुमा वेश्या लुबधइ द्रव्य गमायउ रे। आपणउ कीय इह लोकि पायउ रे ॥४ सु०॥ जिन ध्रम जाण्यउ नठ फल लीजइ रे।। साहमीनइ उपगार करीजइ रे ॥५ सुना इम जाणीनइ भेद जणांवा रे। हुँ आय छु वात सुणावा रे ॥६ सुना सीहोदर राजा तु आवइ रे। तिण आगई कुण जीवत जावई रे॥७ सु०॥ जे जाणइ ते तुं हिव करिजे रे। धीरज समकित उपरि धरिजे रे ॥८ सु०॥ राय कहइ तुं पर उपगारी रे। धन विज्जा तुं अति सुविचारो रे॥ सुना साबासि तुझ नई भेद जणायउ रे। साहमी सगपण साच दिखायउ रे ॥१० सु०॥ वात सुणीनई ततखिण राजा रे। देस उचाल्यउ कटक आवाजा रे॥११ सु०॥ आप रह्यउ राय नगरी माहे रे । सखरे पहिरे टोप सनाहे रे ॥१२ सु०॥