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( ४६ ) हुँ लुबधउ कामी थकउ, गणिकासु दिनराति । विषयतणां सुख भोगवु, विगड्यउ तेहनी वात ।।४।। धन सघलउ खूटी गयुं, निरधन थयउ निटोल। अन्य दिवस गणिका कहई, सांभलि प्रीय मुझ' बोल ॥२॥ पटराणी ना कानना, कनक कुडलनी जोडि । आणी दै ऊतावली, पूरि प्रियू मुझ कोडि ॥६॥ चोरीइंपइठलं राति हुँ, राजानइ आवासि । राय राणी सूता जिहां, भोगवि भोग विलास ॥७॥ हूं छानु छिप नई रह्यो, जाण्युं सोवई राय। तउ राणी ना कानना, कुडल ल्युं धवकाय ।।८।। राजा चिंतातुर हुतउ, निद्रा नावई तेणि । राणी पूछई प्रीयु तुम्हें, चिंतातुर सा केण ।।६।। स्त्रीनइ गुह्य न दीजीयई, वली विशेषइ राति । तिणि राजा बोलइ नहीं, बोलायउ बहुभाति ॥१०॥ राणी हठ लेई रही, गुह्य कह्यो नृप ताम । हुँ मारिसु बनजंघ नई, न करइ मुम परणाम ॥११॥
सर्वगाथा ७० ढाल ३ चाल-१ सुण मेरी सजनी रजनी न जावइ रे,
२ पियुड़ा मानउ वोल हमारउ रे । सुण मेरा साहमी वात तउ हितनी रे। साहमी माटई कहुँ छु चितनी रे ॥१०॥