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चिहुं दिसि दीसचीतरा, वलि दावानल टाह । वानर वोकारव करई, वनमइ विढइ वराह ॥४॥ व्यग्रचित्त वन लांघियत, चालि गया चीत्रउडि। नाना विध वनराइ जिहां, चित्रांगदनी ठउडि ॥॥ अद्भुत फल आस्वादतां, करतां विविध विनोद । सीताराम तिहां रह्या, केइक दिन मनमोद ॥६॥ तिहाथी अनुक्रमि चालिया, आया ' अवती देस । तिहां इकदेस सूनउ थकउ, देखी थयो अंदेस ||७|| गाइ भैसि छूटी भमइ, धानचून भस्या ठाम । गोहनी गोरस सू भरी, फलफूल भस्या आराम ||८|| मारिग भागा गाडला, छूटा पड्या वलद । ठामि २ दीसइ घणा, पणि नहि मनुष्य सवद ।।६।। वइठा सीतल छांहडी, सीतासु श्री राम । लखण बांधवनइ कहइ, किम सूनउ ए आम ॥१०॥ देखीनइं को माणस इहां, पृछां कुण निमित्त । लखण जई उंचउ चड्यठ, एकणि रुखि तुरत्त ।।१।। दूरिथकी इक आवतउ, दीठउ पुरुष उदास । तेनरनई ले आवीयठ, लखमण वांधव पासि ॥१२॥ करि प्रणाम उभउ रह्यऊ, रामइं पूछयउ एम। परमारथ कहुँ पंथिआ, सूनउ देस ए केम ॥१३।। १-गया २-गाम