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( ३२ । हूँ लकागढ नउ धरणी । समुद् खाइ चिहु पासो रे। जगसिरि अक्षर जे लिखइ। ते माहरइ घरि दासो रे ।।१३।। के।। देवता परिण डरता रहइ । नवग्रह कीधा जेरो रे।। हूतउ त्रैलोक्य कटकी। कोनहि मुझ अधिकेरो रे ।।१४।। के०॥ भाई विभीषण सारिखा । पुत्र वली मेघनादो रे। , बइरी मारि प्रलय किया। तेज तणी परसादो रे ॥१५॥ के011 हू रावण राजा वड़उ दसमाथा छइ मुझो रे ॥ हू परिण बीहूँ जेह थी ते सूझ२ को तुज्झो रे ॥१६॥ के० ' बोल्यउ तुरत निमित्तियउ । जारणी मोटउ डर जगो रे।। दसरथ नां वेटां थकी । जनक सुता परसगो रे ॥१७॥ के०॥ वात सुणी विलखउ थयउ । तेड्यउ विभीखरण वेगो रे। जा दसरथ नइ जनक नइ । मारि टलइ ज्यु उदेगो रे ॥१८॥ के०|| हूं तुम पासइ आवीयउ । तिहा सुण्यउ एह प्रकारो रे। ' साह मीना सगपरण भणी । तुम्हे रहिज्यो हुसियारो रे।।१९। के०॥ जनक नइ परिण इम हिज कहि । नारद गयउ निज ठामो रे। गुप्त मंत्र करि मत्रि सु । हू छोड़ी गयउ गामो रे ॥२०॥ के०॥ .. मुझ मूरति करि लेपनी । वइसारी मुझ ठामो रे ।- ..
जनक नइ परिण इम हिज कीयउ आप रक्षा हित कामो रे ॥२१॥ के० . आ-विभीषण एकदा । दीघउ खड़ग प्रहारो रे।।
बे मूरति भांजी करी । उतर्यउ अम्ह नइ भारो रे ॥२२॥ के०॥ त्रीजी ढाल पूरी थइ । बुद्धि फली विहुं रायो रे। ' समयसुन्दर कहइभ्रम करउ । जिम टलइ अलि अन्तरायो रे ।२३|०