________________
किम दिवरायइ भरत नइ। राम थका ए राजो रे । अणदीधी परिण नहि रहइ । मुज्झ प्रतिज्ञा प्राजो रे ॥३॥ के०।। कहउ केहि परि कीजियइ। वे तट किम सचवायारे। इणगी वाघ इहां खाई । केही दिस जव रायो रे ॥४॥ के०॥
तउ परिण वाचा आपणी। पालइ साहस धीरो रे। जीवित परिण जातउ खमइ । केहइ गानि सरीरोरे ।।५।। के० ।। वर दीघउ राणी भणी । परिण मन मइ दिलगीरो रे। इण अवसरि पाव्यउ तिहा। राम पिता नइ तीरो रे ।।७।। के०॥ तात ना चरण नमी कहइ। का चिन्तातुर आजो रे।
आगन्या जिरण मानी नहि । तेसू कहेउ काजो रे ।1८11 के०॥ किवा देस को उपद्रव्यउ । के राणी कीयउ किलेसो रे । के किरण सुत न कह्यउ कीयउ। के कोइ वात विसेसोरे ||८के.॥ के जउ कहिवा सरिखू हुयइ। तउ मुझ नइ कहउ तातो रे । कहइ दसरथ पुत्र तुझ थी कू ण अकहणी वातो रे ।।६। के पुत्र तइं कारण जे कह्यौ । ते माहे नहि कोयो रे।। परिण केकड वर मागइ । कह्यउ परमारथ सोयो रे ।।१०।। के।। राम कहइ राज वीनवउ । वर दीवउ तुम्हे केमो रे। सुणि तु पुत्र दसरथ कहइ । जिमि धुरि थी थयउ तेमो रे ॥११॥ के०॥ एक दिवस नारद मुनी आव्यउ अम्हारइ पासो रे। कहइ लकापति पूछियउ । एक निमित्ति उलासो रे ॥१२॥ के०॥