________________
( ३० ) चित माहे इह चितवइ मुझ वेटा नइ राज। जउ होयइ त अति भलउ सीझई वछित काज, ॥१०॥ अति वलवन्त महा सकज लखमण नइ वलि राम । राज करी सकइ किहा थकी एह थकां नहि ठाम ॥११॥ इण नइ बाँछइ लोक सहु ए दीपता अथाग। तिमिर हरण सूरिज थका कुरण दीवा नउ लाग ॥१२॥ रतन चिन्तामणि लाभता कुण ग्रहइ कहउ काच । दूध थकां कुण छासि नइ पीयइ सहु कहइं साच ॥१३॥ लापसि छाडि नइ लिहंगटउ खायइ कुण गमार । कूरी कारणि कूण नर तजइ जु गन्ध उजारि ॥१४॥ तउ वर मागीसि माहरउ थापरिण लेत न खोडि । आपण प्रियु नइ इम कहइ केकेइ राणी कर जोडि ।।१५।
[सर्वगाथा ७ ३ ढाल त्रीजी रागप्रासाउरी सीधूडउ मिश्र चरणाली चामंड रणि चडइ। चख करी राता चोलोरे विरती दारणव दल विचि ।
घाउ दीयइ घमरोलो। चरणाली चा० एहनी ढाल ॥ केकेइ राणी वर मागइ । आपउ प्रीतम पाजो रे। देसउठउ द्यइ राम नइ । भरत भणि धइ राजो रे ॥१॥ केला. वर नी वात सुणी करी । दसरथ थयउ दिलगीरो रे । राज मांगद राणी सही । वात तणउ ए हीरो रे ॥२॥ के०॥