________________
( २७ ) ईहापोह करता ध्यान । ऊपनउ जाती समरण न्यान । हा हा हूँ भगिनी सु लुधउ । इम वयराग धरी प्रतिवुधउ ||३|| कटक लेई नइ पाछउ वलियउ । घरि आव्यउ सहु सताप टलियउ । चन्द्रगति वाप पूछई एकान्त । भामण्डल कहई निज विरतान्त ॥४॥ हू पाछिलई भवि नउ तात । अहिकुण्डल मण्डित सुविख्यात । अपहरी वाभण नी मई भन्ना । कामातुर थकइ नाणो लज्जा ॥५॥ हूँ मरी नई थयऊ जनक नउ पुत्र । सीता सहोदर वेडलइ अत्र । देवता अपहर्यउ वयर विसेष, तुम्हें सुत कीघउ मिटइ नहिं लेख ।।६।। मइ अगन्यानइ बाछी सीता । हिवपाछिली वात प्रावी चीता। हा हा हुं थयउ अगन्योन अध । मइ माहरउ कह्यउ एह सम्बन्ध ।।७।। ए विरतान्त सुरणी नई राय । अथिर ससार थी विरतउ थाय । भामण्डल नइ दीघउ राज । तिहा थी चाल्यउ ले सहसाज ||८|| आयउ अयोध्या नगरि उद्यान । तिहां दीण मुनिवर ध्रमध्यान । साघु वादी नई एम पयपइ । जनम मरण ना भय थी कंपइ॥ll तारि हो साधजी मुझ नइ तारि । दे दीक्षा भव पार उतारि । चन्द्रगति राय नइ दीधी दीक्षा । सीखावी साधजी वेहुं शिक्षा ॥१०॥ भामण्डल महिमा करइ सार । याचक नइ द्यइ दान अपार । जनक पिता वैदेही मात । सुन्दर रूप जगत विख्यात ॥११॥ चिरजीवे भामण्डल भूप । भाट भाखइ आसोस अनूप ।
राति सू तो थकी सयन मकार । सीता विरुद सुण्या सुविचार ॥१२॥ चितवई ए कु ण जनक नउ पुत्र । अथवा मुझ वाधव. सु पवित्र । अपहरि गयउ ते हनइ तउ कोई, इहां किहां थी पावइ वलि सोई॥१३॥