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( २६ ) साध कहइ ध्रम सांभलउ, ए संसार असार । जनम मरण वेदन जरा, दुखु तणउ भडार ॥४॥ काचउ भाडउ नीर करि, जिण वेगउ गलि जाय काया रोग समाकुली, खिरण मइ खेरू थाय ॥शा बीजलि नउ झवकउ जिस्यउ, जिस्यउ नदी मउ वेग । जोवन वय जाणउ तिस्यउ, ऊलट वहइ उदेग ।।६।। काम भोग सयोग सुख, फलकि पाक समान । जीवित जल नउ बिंदुयउ, सपद संध्यावान ॥७॥ मरण पगा मांहि नित वहइ, साचउ जिन ध्रम सार । सयम मारग आदरउ, जिम पामउ भव पार ८ . साध तरणी वारणी सुरणी, पायउ अति वैराग । घरि अावी राजा जोयइ, व्रत लेवा नउ लाग ।।९।।
[ सर्वगाथा ३१ ] २ ढालबीजी जातिजत्तिनो । वली तिमरी पासइ वडलु गाम एहनी ढाल ॥ वलो । प्रत्येक बुद्धना । त्रीजा खंड नी पाठमो ढाल ।
__ जंबू द्वीप पूरव सुविदेह ।। एहनी ढाल एहवइ भामण्डल सुणी वाणि । रामइ सीता परणि प्राणि ॥ मुझ जीवित नई पडउ धिक्कार, जउ मुझ नही सीता घरि नारि ॥१॥ तउ हूँ ले प्रावि सीकर जोर । कटक करी चाल्यउ प्रति घोर । विचमई विदर्मा नगरी आवी । ए दीठी ती किरण प्रस्तावि ।।२।।