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( २६ ) बीजा खण्ड तगी ढाल बीजी । सुगताँ धरम सू भीजइ मीजी । समयसुन्दर कहइ सहु समझाय । करम तणी गति कहिय न जाय ॥२४॥
[सन गाथा ५५ । इहा १५ दसरथ राजा एकदा जाग्यउ पाछिलि राति । चित माहे इम चिन्तवइ वड वयराग नी बात ।।१।। घन्य विद्याधर चन्द्रगति जिण त्रिण ज्युतज्यउ राज । सयम मारग अादर्यउ सारया मातम काज ॥२॥ मन्दभाग्य हूँ मूढमति खूनउ माहि कुटुम्ब । करी मनोरथ व्रत तणउ अजी करू विलम्ब ॥३॥ घरम विलम्ब न कीजीयइ खिरण २ त्रूटई आय। "आखि तराइफरूकडइ घडी घरू थल थाय ॥४॥ रामचन्द्र नइ राज दे सह पूछी परिवार । सयम मारग आदरू जिम पामु भव पार ॥५॥ इम चिन्तवतां चिंत्त मई प्रगट थयउ परभात । संकल कुटब मेली करी कही राति नी बात ॥६॥ कुटब सहु को इमं कहइ तुम्ह विरहउ न खमाय । तउ परिण ध्रम करतां थका कु ण करइ अन्तराय ॥७॥ राम राज नइ योग्य छइ पग नउ वडउ सकन्ज । वलि चित प्रावई राजि नइ तेह नइ दीजइ रन्न ।।८।। जितरंइ दसरथ रामनइ राज द्यइ देखि वखत्त।' तितरह केकेंई गई राजा पासि तुरत्त ॥६॥