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इम सोचा करता परभाति । गई उद्यान श्रीराम सघाति । दसरथ राजा पण तिहा पायउ, चन्द्रगति रिखि देखी सुख पायउ॥१४॥ साधु, वादी नइ पुछयई एम | चन्द्रगति दीक्षा लीधी केम । मुनि कहइ भामण्डल नी वात । इह भव पर भव ना अवदात ।।१।। सहु लोके जाण्यु निसन्देह । जनक नउ पुत्र भामण्डल एह । - वहिनी जाणी नइ पाए लागउ, सीता मिली सोइ ए दुख, भागउ ॥१६॥ पइसारउं करि नगर मइ प्राण्यउं । रामइ सगपण साचउ जाण्यउ । भामण्डल मुकरिय विचार । मुक्यउ पवन गति खेचर सार ॥१७॥ मिथिला जाइ वधाई दीघी । जनकइ अाभ्रण वगसीस कीधी। जनक राजा वैदेही वेई । विमान बइसारि तिहां गयउ लेई ॥१८॥ जनकइ भामण्डल नइ निरख्यउ । पुत्र नइ हे जइ हीयमउ हरख्यउ। मां बाप चरणे नाम्यउ सीस । वैदेही मनि पूगी जगीस ॥१९॥ हरखइ मा खोलइ वैसाखउ । माथउ चुम्बि बेठउ नाम सार्यऊ । पूछयउ मा बाप वात विचार । आमूल चूलकह्यउ परकार ।।२०।। मा बाप पुत्र पुत्री सह मिलियां । पुण्य प्रमारिण हुंयां रंगरलिया। दारथ आग्रह करि पंच राति । जनक अयं ध्या रह्यउ सिवताति-IIRAI
भामण्डल लेई नइ साथि । प्रायउ जनक मिथिला जिहा आथि । पत्र प्रवेस महोछव कीघउ । दान दुनी लोका नइ दीघउ ॥२२॥
भामण्डल रहि केइक दीह । मा वाप सीख लेई नइ अवीह। सोहर गयउ प्रापगइ गामि । मन वछित भोगवइ सुख कामि ॥२३॥