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७ ढाल सातमी
॥ जाति त्राटक वेलिनो ॥ राग-प्रासावरी ॥
भामंडल नइ भोजन पाणी, भावइ नहिय लगार । रात दिवस रहइ आमगदूमणउ, कहइ हे. हे करतार ॥ तज्या वलि रामति खेल तमासा, स्नान मजन अधिकार । नाठी नीद नाखइ नीसासा, ऐ ऐ काम विकार ॥१॥ बाप कहइ तु साभलि बेटा, सकति घरपी छइ मुज्झ। दाव उपाय करी नइ सीता, परिणावीसि हुं तुज्झ । मनगमती वातइ भामंडलि, वलि पाण्यउ मन ठाम । चद्रगत्ति विद्याधर चीतवइ, किम थास्यइ ए काम ||२|| जउ हु तिहा जाइ नइ मागिसि, तउ दीसइ नहि वारू । खेचर आगइ भूचर कासु, महुत दीजइ किरण सारू। दूरि थकां मागीसि कदाचित, तउ नहिं धइ अहकारी । मान भगउ हुस्यंइ तउ माहरउ, कीजइ काम विचारी ॥३॥ वेगि विद्याधर तेडि चपल गति, मुक्यउ मन हुलास । जा मिथला नगरी त छलि करि, आरिण जनक मुंपास ।। कीधु रूप तुरंगम तेराइ, लोक नइ पाड्यउ त्रास । रूपवत देखी नइ भूपइ, आण्यउ निज आवास ॥४॥ मास सीम राख्यइ रूडि परि, प्राणद अगि उछाहे । इक दिन ते उपरि चडि राजा, पहुतउ वनखड माहे ।।