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________________ ए ढाल छट्टी थई पूरी, समयसु दर इम कहइ ।। सवध स्त्री भरतार नउ ए, सको वखत लिख्यउ लहइ ।।६।। [सर्वगाथा ११४ ] तिण अवसरि नारद मुनी, पहिरण वलकल चीर । मार्थइ मुगुट जटा तणउ, हाथि कमडलु नीर ॥शा सीता नउ रूप देखिवा, पायउ गति अश्रात । देखी रूप बीहामणउ, सीता थइ भयभ्रात ।।२।। घर माहेोनासी गई, नारद कीधी केडि । दासी रोक्यउ बारणउ, गल अहि नाख्यउ गेडि ||३|| भांड विगोयउ माडियउ, दासी सु निरभीक । पीट्यउ काठउ पोलिए, दे झाझी भ्रम ढीक ||४|| नारद सवलउ कोपियउ, ऊडि गयउ आकासि । दुख देवउसीता भणी, वीजी किसी विमासि ||शा वेगि गयउ वेताळ्यगिरि, जिहा रथनेउर भूप ॥ भामंडल आगइ धर्यउ, लिखि सीता नउ रूप ॥६॥ रूप देखि विह्वल थयउ, जाग्यउ काम विकार । नारद नइ पूछ्यउ नमी, ए केहनउ अणुहार ।।७।। के देवी के किनरी, के विद्याधरि काइ ॥ कहइ नारद ए को नही, ए नारी कहिवाइ ।।८।। जनकराय मिथला धरणी, वैदेही तसु नारि ।। सीता पुत्री तेह नी, अपछर नउ अवतार ।।६।। बहिनि पुरण जाणइ नही, हा हा । धिग अगन्यान । हीयइ न जाणइहित अहित, जिम पीधइ मदपान ॥१०॥ [ सर्नगाथा १२८]
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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