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एहवे काघोघर भाइ ए परिवरयर सोहावे। बलदेव आठमउ रामचद मनमोहइवे ॥ मनमोहइ वे रामचंद वर, ए योग्य छह सीता भगी। रजियउ राजा मत्रि वचने, वात कही सोहामणी । मुकिया मारणस राय दशरथ, भरणी कहई अवधारियइ । कीजीयइ सगपण राम नइ, सीता कन्या परिणावियइ ।।३।। पहिलु परिण प्रीति हुँती तुम्ह सेता अम्हारइ वे॥ वलीय विशेषइ वाघइ सगपरणइ तुम्हारइवे॥ सगपणइ वाघइ प्रीति अधिकी, पच्छिम दिन जिम छांहडी। घटा शवद जिम जाइ घटती, अोछा मारणस प्रीतडी।। हरषियउ भूपति भगइ दशरथ, वात जुगती कही तुम्हे । माग्या ढल्या एहीज सगपरण, करणहार एहुंता अम्हे ॥४॥ उंघतइ विछाणउ लाघउ, पाहीणइ वूझारणउ वे ।। मुग नइ चाउल माहि, घी घराउ प्रीसारणउ वे॥ घी घराउ प्रीसाएउ दूध माहि, सखर साकर भेलवी। घृतपूर ऊपरि घणउ बूरउ, जीमता मन नी रली ॥ चालता डावी देवी बोली, पइसता जिमणउ हुयउ ।। ए कीयउ सगपण कहउ जइ नइ, वीवाह नउ मुहरत जुयउ ॥५॥ नातरउ सावतउ करि ते नर आया बे। राजा नइ राणी नइ सगला सरूप जणाया वे। सगला सरूप जणावीया नइ, सीता पणि हरखी घणु हार विचि पदक मिल्यु मनोहर, भाग वडु सीता तणु