________________
कइ जीवाणी ढोल्या घडा, कइ (मइ) मारी जू लीख है| कइ सखारउ सोखव्यउ, कइ भाजी राकभीख है|कि० ॥ कह तिल पाणी पीलिया, कइ कीया रागणि पास है। खाणि खणावी धात नी, कइ वालाव्या कास है०॥१०॥किoll कइ मइ दावानल दीया, कइ मइ भांज्या गाम है||११||कि०॥ कइ अागि दोधी हाथ सू , कइ भाज्या आराम है०||११|कि०॥ कइ रिण भागउ केह नउ, कइ पेटि पाडी झाल है। कइ मइ झाला माछला कइ मइ माऱ्या वाल है|१२||कि०॥ कइ मइ मोठ्यो करडका, कइ दीधी निभ्रास है॥ कइ कोई विष दे मारीयउ, कइ ढाया आवास है०||१३||कि० कइ बछडा दूध धावता, मा थी विछोह्या साहि । है॥ के मड बलद मुख बांधिया, वहिता गाहता माहि ॥है।।१४॥कि० के तापस रिपि दुहव्या, मुझ नइ दीघउ सराप है| के साध नी निंदा करी, ए लागा मुझ पाप है|१शाकि०॥ इम विलाप करती धको, वलि समझावी भूप है। दुक्ख म करि तु वापडी अथिर सतार सरूप ॥है|१६||कि०॥ कीधा करम न छूटीयइ, सुख दुख सरिज्या होय है। रागी मन हठकी लीयउ, साचउ जिनध्रम सोइ है||१७||कि०॥ चवथी ढाल पूरी थई, ए वातन आभोग है। समयसु दर साचु कहइ, दोहिलउ पुत्र विजोग ॥०॥१८।।कि।।
[ सर्वगाथा ८८]