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४ ढाल चवथी ढाल-धरि पाव रे मनमोहन धोटा ॥ एहनी ढाल हाहा | देव तइ स्यु कीयु , मुझ आखि दे लीधी काढि ॥ है है | भूसकतो नाखी भु हिं, मुझ नइ मेरु ऊपरि चाढि ॥है है।।१।। किरण पापी रे म्हारु रतन उदाल्यु , हा हा हुँ हिब केथी थां॥है। कहउ हुँ हिव किण दिस जाउ, है है । किण पा० आकणी०॥ हाथि निधान देई करी, मुझ लीधु बूसट मारि है। राज देई त्रिभुवन तणु , मुझ खोस्यु का करतार है॥२॥कि०॥ गज उपरि थी उत्तारि नइ, मुझ नइ खर चाडी आज है। राणी फेडि दासी करी, भर दरियइ भागउ जिहाज ॥॥शाकि०॥ गयउ आभरण करडियउ, गयउ रतन अमूलक हार है॥ आज भूली पडी रान मइ, आज वूडी समुद्र मझारिहैगा४॥कि०॥ देव नइ ऊलभा किसा, मइ कीधा पाप अघोर है॥ पूरविलइ भवइ पापिणी मइ, सउकि रतन लीया चोरि है||५||कि० के थापरिण मोसा कीया, कइ मइ दीधा कूडा पाल है। कइ छाना प्रभ गालिया, कइ भाजी तरु डालि है॥६॥कि०॥ कइ काचा फल त्रोडीया, कइ खणि काट्या कद ॥१०॥ कइ मइ सर द्रह सोखीया, कइ माऱ्या जल जीव वृद है॥७॥कि०॥ कई मंइ माला पाडिया, के किउ खेत्र विनाश ॥ कइ मइ इंडा फोडिया, कइ मृग पाड्या पाश साहिकि०॥