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ढीका पाट करी मारइ मुहकम, नगर थी बाहिर कियउ । तिहां धरम सांभलइ साधु पासइ, वइरागइ सजम लियउ ॥५॥ तिहा तप कीधा प्राकरा ।।पू०॥ ऊपनउ सरग मझार । अहिकु डल परिण एकदा ॥पू०॥ साभल्यउ जिन ध्रमसार ॥ सांभल्यउ जिन ध्रम साघ पासइ, भद्रक भाव पणुधरी ऊपनउ वैदेही उयरि ते, पुत्रयुगल पणइ करी ॥ पाछिला भव नउ वयर समरी ते वालक तिरण अपहर्यउ । मारीसि एह नइ दुक्ख देइसि, चित्तविचार इस्यउ धर्यउ ॥६॥
झालि पगे पछाडिस्यु ॥पू०॥ वस्त्र धोबी धोयइ जेम। अथवा खाड उडी खरणी ॥पू०।। गाडि नइ मारिसि एम ॥ मारिसि एम हैं वयरवालिसि, ए लहिस्यइ आपणउ कीयउ । इम चित्त मांहि विचार करतां दया परिणाम प्रावियउ । जिन धरम ना परसाद थी, मइ देवता पदवी लही । वाल नी हत्या नहि करू पणि, काइक परि करिवी सही ॥७॥ कुडल हार पहिरावीयउ-।। पू०।। मुकियउ वैताढ्य बाल । चन्द्रगति नाम विद्याधरइ ।। पू० ॥ दीठउ ते ततकाल ।। ततकाल वालक नइ उपाड्यउ, रथनेउरपुरि ले गयउ । असुमती आपणी भारिजा नइ, कहइ ए तुझ पुत्र थयउ ॥ हुँ वाझि माहरइ पुत्र किहा थी वात समझावी कही। वोलजे मानुखा सूयावडि, अन्त पन्त लेवउ नही ।।८।। माथउ बाघि माहे सुती ।। पू० ।। फोसू सूयावडि खाय । पुत्र नइ पासि सूयाडियउ ॥ पू० ।। प्राणद अगि न माय ।।
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