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(८) नजरि नजरि विहुं नी मिली, |पू०॥ जाणि साकर सुदूध । मन मन सुविहुं नउ मिल्यउ, |पू०|| दूधपाणी जिम सूध ।। जिमि सुद्ध तिमि वलि जीव जीव स, मिल्यउभारंड नी परि। कोमी थकउ ऊपाडि तेह नइ, ले गयउ विद्रभारि ।।। काम भोग ना संयोग सगला, सुक्ख भोगवतउ रहइ॥ विद्या हुँती ते गई वीसरि, धन विना ते दुख सहइ ।।२।।
तिहां राजा नउ पुत्र हुंतउ |पू०।। अहिकु डल इण नामि । तिण दीठी ते सुंदरी ।।पू०॥ अति सु दरी अभिराम ।। अभिराम देखी रूप सुंदर, काम विह्वल ते थयउ । दूतिका मु की छल करी नइ, महुल मांहि ले गयउ । सुख भोगवइ तिण साथि कुयर, चोरां विच पड्या मोर ए। ए देखइ नही आपणी अस्त्री, मधुपिंगल करइ सोर ए ॥३॥ राजा पासि जाइ कहइ । पू०।। देव सुणउ अरदास । अस्त्री किरण मुझ अपहरी ॥पू०गा तुम्हे करउ न्याय तपास ।। तपास निरति करउ नरेसर, मुझ लभाडर गोरडी । वल दूवलो नइ कह्यउ राजा, ते पखइ न सरइ घडी ॥ तिहां कुमर नउ कोइ पुरुष कपटी, मधुपिंगल नइ इम कहइ । मइ साधवी नई पासि दीठी, पोलासपुरि जा जिम मिलइ ॥४॥
ततखिरण ते तिहांकरिंग गयउ |पू०॥ जोई सगली ठाम । राजा पासि पाव्यउ फिरी ॥पूना कहइ तिहां न लाभी साम ।। कहइ तिहां न लाभइ मुझ प्रमदा, राजा सुझगडउ कीयउं । राजा कहइ हुं किसु जाणु, रीस करि नइ भडकीयउ॥