________________
[ ५० ] __ भंग के भय से तुम्हें भोग न सका पर अव भी नहीं मानोगी तो मैं वल प्रयोग करूँगा। सीता ने कहा-यदि मेरे पर तुम्हारा स्नेह है तो परमार्थ की बात कहती हूं कि जब तक राम, लक्ष्मण और भामण्डल जीवित हैं तभी तक मैं जीवित रहूँगी! सीता यह कहते हुए मरणासन्न हो गिर पड़ी। रावण के मन में बडा पश्चाताप हुआ। वह कहने लगा-मुझे धिक्कार है, मैंने राम सीता का वियोग कराके बहुत ही बुरा किया। भाई विभीषण से भी विरोध हुआ। मैंने वास्तव में ही कुमतिवश रत्नाश्रव के कुल को कलंकित किया है। अब यदि सीता को लौटाता हूं तो लोग
कहेंगे कि लंकापति ने राम लक्ष्मण के भय से सीता को लौटा दिया ! ___ अव मुझे युद्ध तो करना ही होगा पर राम लक्ष्मण को छोड़कर दूसरों
का ही संहार करूँगा।
युद्ध-कृत संकल्प रावण की वीरता रावण युद्ध के लिए कृत संकल्प होकर लंका से निकला। मार्ग में उसे नाना अपशकुन हुए। मन्त्री, सेनापति और महाजन लोगों के वारण करने पर भी बहुरूपिणी विद्या के वल से वह अपने आगे हजार हाथी और दस हजार अपने जैसे विद्याधरों की रचना करके रणक्षेत्र में उतरा । केशरीरथ पर राम और गरुड़ पर लक्ष्मण आरूढ हो गये। भामण्डल, हनुमान आदि सभी सुभट सन्नद्ध होकर उत्तम शकुनों से सूचित हो राक्षस सेना से जा भिड़े। राक्षस और बानर सेना मे .. भयंकर युद्ध छिडा। रक्त की नदियां बहने लगी। हनुमान द्वारा राक्षसों को क्षत-विक्षत होते देख मन्दोदरी का पिता आगे आया, हनुमान ने उसे तीरों से बींध कर रथ का चकनाचूर कर डाला । रावण ने विद्या