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धर्मवद्धन ग्रन्थावली
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कर्म
आदर ऊंचे कुल अधिक, ऋद्धि घणो नीरोग । . धरम थकी है घरमसी, सैणा रो संयोग । सेंणां रो संयोग, सोग री बात न सुणिज । महिपतिबै वहुमान, गाम में पहिलो गिणीजै । सहु को बोले सुजस, फलै पुण्य वृक्ष इसा फूल । मनवाछित सहु मिलें, आइ उपजे ऊंचे कुल । आदर ।११
गर्व ऋद्धि त्यागौ रन मै रहो, रहो परीसा सर्व । तत्त सधैं नहीं की तिणे, गयो नही जा गर्व । गयो नहीं जा गर्व, सर्व तप निफल सधीया । जोइ बाहुवल जती, वप्पु उपरि खड वधीया । गरव तज्यो तव ज्ञान, तुरत हिज उपज्योतन मै । धर्ये गर्व नहीं धर्म, ऋद्धि त्यागौ रहो रन में । ऋ ।१२। . . . रोस दमन
रीस बट्टे राखीजें, तिण उपजते तागि । पले नहीं प्रगटी पछे, उन्हालै री आगि । उन्हालै री आगि, सही जाये नहीं सहणी । हुवै घणी जिण हानि, देह पिण दुखें दहणी । सैंण हुवै सहु सन्तु, फिरै जायें मन फट्टे । सुणे सैंण धर्मसीख, राखिजे रीस दब? । रीस ॥१३॥