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धर्मवद्धन ग्रन्थावली सर्व गुरु अक्षर सरस्वतीकी स्तुति
सवेंया इकतीसा सिद्धा रूपी साची देवा, सारै जीकी नीकी सेवा ,
रागै आए लागें पाए, जागे मोटी माई है। चंगी रंगी वीणा वावै, रागें सारै रागैं गावें ,
हाव भाव सोभा पावें, ज्ञाता जाकुं गाई हैं। हंसी कैंसी चाली चाले, पूजी वंदी पीड़ा टालें,
लीला सेती लालैं पालै, शुद्ध बुद्धिदाई है। सो है वानी नीकी वानी, जाकुं ज्ञानी प्राणी जानी ,
ऐसी माता सातादानी, धर्मसीह ध्याई है ॥४॥
सर्व लघु अक्षर साधुकी स्तुति
भझरा की चालि
धरत धरम मग, हरत दुरित रग
___ करत सुकृत मति हरत भरमसी। गहत अमल गुन, दहत मदन वन
रहत नगन तन सहत गरम सी। कहत कथन सन वहत अमल मन .
तहत करन गण महति परमसी । रमत अमित हित सुमति जुगते जति
चरन कमल नित नमत धरमसी ॥५॥