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कविवर धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
धर्म बावनी ॐकार महिमा सवैया तेवीसा
ॐकार उदार अगम्म अपार, संसार में सार पदारथ नामी। सिद्ध समृद्ध सरूप अनूप, भयो सबही सिरि भूप सुधामी ॥ मंत्र में यंत्र में ग्रन्थ के पंथ में, जाकुं कियो धुरि अंतरयामी । पंच ही इष्ट वसैं परमिष्ट, सदा धर्मसी कर ताही सलामी ॥१॥ नमो निसदीस नमाइ के सीस, जपौ जगदीस सही सुख दाता। जाकी जगत में कीरति जागत, भागति है सब ईति असाता ॥ इन्द नरिंद दिणिन्द फुणिन्द, नमाए हैं वृन्द आणद विधाता। घोरी धरम को धीर धरा धर, ध्यान धरे धर्मसी गुण ध्याता।।२।।
मुरु महिमा
महिमा तिनकी महिमें महिमे, जिन दीनो महा इक ज्ञान नगीनो। दूर भग्यो भ्रम सौ तम देखत, पूर जग्यो परकास नवीनो। · देत ही देत ही दूनो वधै, अरु खायो ही खूटत नाहि खजीनों। एसो पसाउ कीयो गुरुराउ, तिन्है धर्मसी पद पंकज लीनो ॥३॥