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( ३२ ) साधुकीर्तिजी के शिष्य साधुसुन्दर भी बहुत अच्छे व्याकरणी थे। उनके रचित धातुरत्नाकर, क्रियाकल्पलता टीका ( स० १६८०, दीवाली ) उक्तिरत्नाकर, और पाव स्तुति ( स १६८३ ), शतिनाथ स्तुति वृत्ति प्राप्त है। साधुसुन्दर के शिष्य उदयकीर्ति रचित पदव्यवस्था टीका (स १६८१ ) और पचमी स्तोत्र उपलब्ध हैं।
___ साधुकीर्तिजी के अन्य शिष्य विमलतिलक के शिष्य विमलकीर्ति भी अच्छे विद्वान् थे। उनके रचित चन्द्रदूत काव्य ( स० १६८१), आवश्यक बालाववोध, जीवविचार बा०, जयतिहुअण बा०, पक्खीसूत्र बा०, दशवकालिक वा०, प्रतिक्रमण समाचारी टब्बा, गणधर सार्द्धशतक टब्बा, पष्टिशतक बा०, उपदेशमाला वा०, ईकीसठाणा टव्वा, एवं यशोधर रास, कल्पसूत्र समाचारी वृत्ति, और कई स्तवन, सज्झाय आदि प्राप्त है। इनके सतीर्थ्य विजयकीर्ति के शिष्य विमलरत्न रचित वीरचरित्र बालावबोध (सवत् १७०२ पोप सुदी १० साचोर ) प्राप्त है। इन्हीं विमलकीर्ति के शिष्य विजयहर्प हुए और उनके शिष्य धर्मवर्द्धन । विमलरत्न रचित विमलकीर्ति गुरू गीत के अनुसार विमलकीर्ति हुँबड़ गोत्रिय श्रीचन्द शाह की धर्मपत्नी गवरा की कुक्षि से जन्मे थे। सवत् १६५४ माघ सुदी ७ को उपाध्याय साधुसुन्दरजी ने आपको दीक्षित किया। गच्छनायक श्रीजिनराजसूरि ने इन्हें वाचक-पद प्रदान किया। सवत् १६६२- मे आपने