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धर्मवद्धन ग्रन्थावली हिव अति हरख्यो मदहरो, देख निरंजन देव । मिथ्यामति मेटी करे, श्री जिनवर नी सेव ।।२।। इन्द्र हिंव आत्रै इहा, सबल आडंवर साज । नृप प्रतिबोधण जिन नमण, एक पथ दोड काज ॥३॥
ढाल (५) इण अवसर कोइ मागध आयो पुरन्दर पास, रा देशी
सोधरम देवलोके शक महासुर राज, दीठौ राय दशारण वदण नै सजे साज । करणी एह कर ते धन जिन वदन काज, पिण अहंकार उतारनै हु प्रतिवोध आज ||१||
सुरपति हुकम इरापति देव धरी ऊछाह, चौसठि सहस्स वड़ा गजराज विकुर्वे चाह, इक इक गजरै मुख सुखकारी पाचसै वार,
मुख मुख आठ दंतूशल रच्या श्रीकार ||२|| इक इक दंते पंते वारू अठ अठ वावि, वावी वावी आठ आठ कमल सुगंध धर भाव कमले कमले लख लख पाखडिया परसिध, प्पाखडीए पाखडीए नाटक वत्रीस वद्ध ॥३॥
बलि प्रति कमले मध्य प्रासाद वतस विमान, राजे तिहां अग्रम हिपी आठे शक्र राजान, एह अचभे रूप अनूप वण्या असमान देख दमारण राजा आप तज्यो अभिमान ।।४।