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श्री दशार्णभद्र राजर्षि चौपई वीर जिणेसर वद ने, प्रणम् गौतम पाय, एहनो सासन आज ए, सहु जीवा सुख थाय ।। विधि सु करता वंदना, धरता मन सुद्ध ध्यान, लहिये सुख इह लोक ना, परभव मुक्ति प्रधान ।। वादंता श्री वीर ने, मन थी छोड्यो मह, इन्द्र प्रशंस्यो आपथी, भलो दसारणभद ।३। मदहरसूत शिवधरम मे, पेखी तिण प्रस्ताव, दसार्णभद्र कीध दृढ, भगवत ऊपरि भाव ।४। भाति भाति दीठी भली, गुण अवगुण ह ज्ञान, भली वस्तु सहु को भजे, निरखी तजे निदान ।।
ढाल (१)-कपूरहुवे अत्ति उजलो रे, ए देशी सम्बन्ध ए तुम्हे साभलो रे, कारण मूल कहाव, अधिक दशार्ण आदर्यो रे, भगवंत ऊपरि भाव ।। सुगुण नर ए सुणिज्यो अधिकार साभलिता थासी सही रे, आगें लाभ अपार, सु०२। देश सहु मे दीपतो रे, वारू देश वैराट, सहू को लोक सुखी सदा रे, वरतें निज कुल वाट, ३। मोटो एक तिण देश मे रे, गिणजे धनपुर गाम, धन धाने धीणे करि रे, ठावो निरभय ठाम । स०।४।