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श्रीमती चौढालिया
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मांहो मांहे मीटे मिल्या ए, मान महातम खोय, पछाताप ते अति कर ए, हुणहार जिम होय ।८। भूपति प्रमुख सको भणे ए, श्रीमति ने साबास, वैरी घाव वखाणीये ए, राख्यो शील सुवास, है। तेड़ी राजा तेहनें ए, सखरो दै सतकार, श्रीमती तुमोटी सती ए, नाम थकी निस्तार ।१० वसत्र आभ्रण दीया घणा ए, वहनी नाम बोलाय, पोते नृप पगे लागने ए, निज अपराध खमाय ।११। गाजे बाजे हर्प सु ए, पहोंचावं नृप गेह, सहु लोक मे जस थयो ए, धन धन श्रीमति एह ।१२। नगरी माहि बहु हुवो ए, जिण धरम नो उद्योत । सुध शील पाल्यो थका ए, श्रीमति पर वाधे ज्योत ।१३। कितरो काल गया थका ए, आयो तसु भरतार, शील प्रसादे सुख लह्यो ए, बरत्या जय जयकार ।१४। अन्य दिवस गुरु आविया ए, धरमघोप अणगार, श्रीमती संजम लीयो ए, जाणी अथिर ससार, १५॥ व्रतधारी श्रावक हुवा ए, राजादिक बहु लोग, पुन्न तणे परसाद थी ए, थाये सगला थोक, ।१६। सूध साधवी श्रीमती ए, सुर पद पाम्यो सार, महाविदेह में सीझसी ए, एक लहसि अवतार ।१७१ सीले सुख सदा लहै ए, सीले जस सोभाग, धरम थकी कहै धरमसी ए, सफल फलै तसु आस ।१८। इति श्रीमती चौढालिया सम्पूर्ण
[स्वामी नरोत्तमदास जी के सग्रह से ]