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श्री दशार्णभद्र रोजपि चौपई ३२७ मदहर सुत मणिहारीयो रे, वसे तिहा सुखवास, सखरो आप सुमारगी रे, त्रिया कुशीला तास । स०॥ • कोइ क तिहा कणवारीयो रे, मनरो तिण सु मेलि,
आवै छानो अवसरे रे, करिवा तिण थी केलि ।स० ।। उणही ग्रामे एकदा रे, मोटे चोहटें माहि, नाटिकीया नाचै नवा रे, आवें लोक उमाहि ।स०७) किणही नाटिकीये कीयो रे, नारी रूप नवल्ल, भाति भाति खेलें भलो रे, अदभुत कला अवल्ल ।स०८ तेहवे ते मदहर त्रिया रे, देखण आवी दौड़ि, नटवी रूप निहाल ने रे, ठिक न रह्यो दिल ठोड़ि।।। उण रा साथी आगले रे, तेह त्रीया कहें ताम, मुझ घर आवी जो मिलें रे, चु तुहने सो दाम ।१० तुरत बात मानी तिणे रे, नाटिक परो निवेड़ि, नाटिकीयो तिण नारिने रे, आयो करिवा केड़ि।११॥ त्रिया रूप नटवो तिको रे, आगण उभो आय, मदहर त्रिय माहे लीयो रे, बहु आदर बोलाय ।स०१२॥ पग हाथ प्रमुख पखालिवा रे, निरमल दीधो नीर, पुरसें भोजन युगति स रे, खाडि घिरत ने खीर ।१३। जीमण बैठो जेतलै रे, नटुवो वेसे नारि, तिण वेला कणवारियो रे, बोल्यो घरि ने बार स०१४। नारि कहे नट नारि ने रे, कर मति चिंता काइ , तू छिप वैसि तिला तणे रे, मोटे कोठे माहि ।सु० १५॥