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श्रीमती चौढालिया
३२३ ऊपरलै मन हुँतै माहे बुलायो राय, पग धोवावै पाणी ल्याव ज्यु निशि जाय । इण अवसर आफलती रोती बारण आय, पाड़ोसणी कीमाड़ ने कूटै करि हाय हाय ॥६॥ कूकै पाडोसण हलफली खोल किमाड ताहरा पति ना कागल माहे मोटी धाड़ राजा कहै सु कीजै पहिली मुझ नै छिपाय चौथे भखारै घाल्यो तालो दीध जड़ाय ॥१०॥ आस पासै लोक मिल्या तेह निसुणी कूक कूड़े चित्त सती पण रोवै प्रीय गयो मुझ मूक जड़ीया पेई मा च्यार जणा जाणे मामै चूक काइ आया हिव केम निकलम्या रहिस्या मूक ॥११॥
इतर सूरज ऊगीयो, प्रगट थयो परभात, सेठ तणी सभलावणी, करती सगले वात, ॥१॥ आरण कारण करण ने, सगला मिल्या सब कोय; मुंओ सेठ अपूतीयो, सुणीयो राणी सोय, ॥२॥ माल करावो खालस, राजा ने कहो जाय, भूपत किहा लाभ नहीं, जोयो सगले ठाय, ॥३॥ राजा मुहतो नहिं घरे, तिम प्रोहित कोटवाल, किण हिक मोटा कामवश, गया होसे ततकाल ॥४॥