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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली प्रोहित कहे जाण्यो ? एणे मुझ विकार, तो आयो इण वेला कीजे कवण विचार ||३|| सतीय भणी कई प्रोहित माहरा वाप नो सूस, तुम उपगार गिणीस छिपाय तुंमुझ नै तिण मंजूस, तिण मजूस मे एक भखारै घाल्यो ठूस, सबलौ तालो दीधो सरब रही मन हूंस || हिवं कोटवाल नै माहे लीधो दीधो बहुमान, नवी सजाई करवा माडी भोजन पान । फिरता घिरता आधी रात गमाई ग्यान, तीजे पहुरे बारे बोल्यो प्रधान ॥५॥ साद ते अटकलीयो हलफलियो कोटवाल, मुझ ने जाणि मुहते कुड करी ततकाल । हिवै किहा जाऊ के थी थाउ चोली बाल, वैसि रहो भखार नी बीच मंजूस विचाल ॥६॥ तिहा वलि तालो दीधो लीधो मुहतो माहि, अधिक भगत करै पिण ऊपरले मन उच्छाह । जिम तिम रात गमावै बात घणी आगाह, बारणे राजा बोल्यो चउथे पहुरै चाह ॥षा मंत्री जाण्यो इण वेला नृप आयो आप, मुझ करतूत तिहां थी वाणी पूरो पाप । मुझ संताड़ि हिवे नहिं बीजी काइ टाप, तीजै घर घालि दीयो तालो टाल सताप ||८||