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श्रीमती चौढालिया राजा हुवे सहुनो धणी रे लाल मत तु वचन उथाप सु० , चउथे पहुरै रातनै रे लाल आविजो थे आप सु० १३ करि सकेत जुदा जुदा रे लाल आवि आपनै गेह सु० शील राखण में श्रीमती रे लाल जोयजो करस्यै जेह सु० १४
सती कहै ते वारता, पाडोसण नै तेड़, च्यार नगर ना थंभ ते, मुके नहीं मुझ केड़, १ कूड़ो कागल ले करि, रोती देती राड़, तू ओए निशि पाछली, कूटे मुझ किमाड़२ इम सिखावी तेहन, मोटी सझी मंजूस, च्यार भखारी तेह में, कोइ मति जाण्यो कूड़ ६ इण अवसर संझ्या थई, आथम्यो जब सूर, नेह सहित नि (स) ज थयो, तो प्रोहित नवले नूर, ४
ढाल ( ३ )- नवकार री वस्त्र आभरण अमोल तंबोल सजाई चूर, हरखि आयो सति घरे हसतो ऊभो हजूर ॥१॥ कूडै मन आदर कर तेह' सजाई लीध, दासी ने सनकारि सिखावी सगलो सिधो दीध, भोजन पान सजाई करता वेला कीध, बाधी रात पड़ी छै आकुल थाओ म सीध ॥२॥ बीजे पहोरे आयो आय बजायो वार, हुँ कोटवाल उघाड़ किमाड़ म लावो वार।
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