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३२० धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली सीले निर्मल श्रीमती रे लाल करि बुध वल प्रचंड सु० जोयजोये इण भात सु रे लाल राखे सील सुचग सु०२ कहै कोटवाल चिंता किसी रे लाल ए नाखिस अवहेल सु० प्रोहित रहसी पाधरो रे लाल पिण तु मोसु मन मेल स०३ सती कहै छ वातड़ी रे लाल नहि छ ताह न लाग सु० पाणी थी किम प्रगट रे लाल ऊनी वलती आग सु०४ मोसु ताण मती करो रे लाल कह्यो इम कोटवाल सु० सती कहै तमे आवजो रे लाल वीजे पहुर विचाल सु०५ तिहा थी आवि उतावली रे लाल कहै मु ता ने एम सु० राजा धुर धर थानके रे लाल कह्यो अन्याय हुवै केम सु० ६ कोटवाल कुमारगी रे लाल हु नांखिसु उखेड़ सु० रूपे मोझो मुतो कहे रे लाल तु मुझ ने घर तेड़ सु०७ सू बोलो छो कहै सती रे लाल सगला सरिया काज सु० अमृत थी विप ऊपजे रे लाल आयो कलजुग आज सु०८ मु तो कहै बोलो मती रे लाल सो वाता एक बात सु० तीजे पहुरे पधारजो रे लाल इम कहि गई असहात सु०६ आवी राजा ने कहै रे लाल मुता मे नहिं माम सु० कहै छै तुझ घर आवसुरे लाल सुकीजे हिव साम सु० १० राजा रूपे रीझियो रे लाल रागे कहे इण रीत सु० मुतो स मुझ आगल रे लाल मुझ न कर तुमीत सु० ११ भूप भणी कहै सती रे लाल धरती खावा धाय सु० तुमे छो प्रजा ना पिता रे लाल एह करो किम अन्याय सु० १२