________________
महोपाध्याय धर्मवद्धन
राजस्थानी साहित्य की जैन विद्वानो ने बहुत बड़ी सेवा की है। १३वीं शताब्दी से अब तक सैंकड़ों जैन कवि हो गये है जिनकी रचनाओ का प्रमाण कई लाख श्लोकों का है। गद्य और पद्य दोनों प्रकार का विविध विपयक राजस्थानी साहित्य जैन विद्वानो के रचित है। जैन विद्वानों मे प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी, सभी भापाओ के विद्वान हो गये है। इनमे से कुछ विद्वानी ने इन सभी भापाओ मे रचनाएं की है कुछने केवल राजस्थानी मे ही और कुछ ने राजस्थानी, हिन्दी, गुजराती भाषा में ही अपनी सारी रचनाएं की है। यहा उनमे से एक ऐसे कवि और उनकी रचनाओ का परिचय दिया जा रहा है जिन्होंने विशेषतः संस्कृत, राजस्थानी,हिन्दी इन भाषाओं में रचनाएं की है। वैसे उनके रचित पट-भाषामय स्तोत्र और सिन्धी भाषा के दो स्तवन भी प्राप्त है। अपने समय के वे महान् विद्वानो मे से थे। अपने गच्छ मे ही नहीं राज-दरवारों में भी इन्हें अच्छा सन्मान प्राप्त था। उन कविश्री का नाम है 'धर्मवर्द्धन' । जन्म ___ कविवर धर्मवर्द्धन का मूल नाम धर्मसी था जो उनकी कई रचनाओं मे भी प्रयुक्त है। जैनमुनि-दीक्षा के