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________________ ३०४ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली घटा टोप मेघा गडडुत गाज, हुबक्कै तरंगा विरंगाहु वाजै ।। २२ ।। लिचा पिञ्च लागी घडी ताल भाजै, अहो कोड राखै अठै अम्ह काजै । इसे सकट जे जपैं जैनराजे, सही पार पामै तिके सुक्ख साजे ।। २३ ।। इति जल भय गड गुबड गोलक हीय होड़ी, ____ हरस्स खसं उध्रसं गांठि फोडी । टले गोढ थी कोढ अड्डार रोडी, महाताप सताप आतंक कोड़ी ॥ २४ ॥ न होवै कदे कायमै काय खोडी, सहु आधि व्याधं सही जाइ छोडी। जिणंदं नमै मन्न मे मान मोड़ी, ___ लहे सो सदा सुक्ख संपत्ति जोड़ी ।। २५॥ इति रोग भय अमूछा मलेछा वली मन्न खोटा, जिया चक्खु चुचा लुल्या गाल गोटा । वली पाघ वाकी लपेट्या लंगोटा, . सहेटा गह या सब्बला हाथ सोटा ॥ २६ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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