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शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह ३०३ वलक्के वलंतौ चलंतो करालं,
__ जिणै फूकि सूकै तरू माल डालं ॥ १७ ॥ हला हाल सलोलियं विक्ख लालं,
रहै लाल लोचन्न दो जीह वाल । धरता प्रभू नाम रिदै विचालं,
सही साप होवे जिसी फूल मालं ॥ १८ ॥
इति सर्प, भय भिड़े भूप भूपे अधिक्के अटक्के,
. खला हाड तूट खडग्गा खटक्के । परा हैवरा पाडि नाख पटक्के,
धुरा सिंधुरां कवरा भू धटक्के ।। १६ ।। प. प्राण संधाण बाणे बटक्के,
हुके केई हाथाल रोसैं हटक्के । झला झाल गोलेहु नाले भटक्के,
तु तुड मुडा प्रचंडा तटक्के ॥ २० ॥ छछोहा सलोहा पहुंधा छिटक्के,
झुक्क सूर झझेडि नाखें झटक्के । प्रभु नाम लेता इसे ही अटक्के,
कदे बाल बाको न हो4 कटक्के ।। २१ ।।
॥ इति युद्ध भय ॥ जतन्ने घणे केइ बैसे जिहाजै,
____ अथग्गे जले आइ कुव्वाइ वाजै ।