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________________ - शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह २६६ जिण लहै पाचे, तेम पाचे ईरवै मिलि दश हुआ । इक इक विदेह बतीस विजया, तिहा पिण जिण जुजुआ ।। एक सौ सित्तरि एम जिणवर, कोड़ि नव वलि केवली । नव कोड़ि सहसे अवर मुनिवर, वंदिये नित ते वली ॥ २४ ॥ इहा भरते ईरवते आज ए, पचम आरै नहिं जिनराज ए । धन धन पाचे महाविदेह ए, विचरै वीसे जिन गुण गेह ए॥ गुण गेह दोष अढार वर्जित, अतिशया चौतीस ए । चउसहि इद नरिंद सेवित, नमू ते निस दीस ए । तिहा आज तारण तरण विचरइ, केवली दोइ कोड़िए । दुइ सहस कोड़ि सुसाधु वीजा, नमुं वेकर जोड़ि ए ॥ २५ ।। ॥ कलश ॥ इम अढी दीपे पनर करमा-भूमि क्षेत्र प्रमाण ए । सिद्धात प्रकरण साखि भाख्या वीस वइहरमाण ए॥ श्रीनगर जेसलमेर सवत सतर उगणतीसै समै । सुख विजयहरप जिणिंद सानिधि नेह धरि ध्रमसी नमैं ॥२६॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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