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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
तिण आध करि अठ लाख जोयण, अरध पुष्कर एम ए । तिहा करमभूमि छए कहीजै, धातकीखंड जेम ए ॥२०॥ आधे पुष्कर में पूरव ढिसै, मदर नामै मेरु तिहा वसैं । पच्छिम विज्जूमाली मेरु ए, इहां किण इतरौ नामै फेरे ए ।। फेर ए इतरौ इहा नामै, अवर ठामै को नहीं । - - इक एक मेरै तीन तीने, करमभूमि तिहा कही। तिम भरत ईरवतइ विदेहे, नाम सिरखें हेत ए। तिणहीज नामै विजय सगली, सासता ध्रम खेत ए ॥२१॥ घातकी खंड तिम पुष्कर सही, इण क्षेत्रां नो मान कह्यौ नहीं। दुगुणा दुगुणै अति विस्तार ए, शास्त्र थकी लेज्यो सुविचार ए॥ सुविचार वाकी तेह सगलौ नगर तिमहिज मन गमै । पूरब पच्छिम जेह जिणदिसि, तेह तिमहिज अनुक्रमे ।। श्री चंद्रवाहु भुजंग ईसर, नेमि च्यार तिथंकरा। पूरवं पुष्कर अरध माहे, सरब जीव सुखकरा ॥२२॥ वइरसेन बंदू जिन सतरमो. श्रीमहाभद्र अठारम नित नमो। देवजसा उगणीसमौ देव ए, जसोरिद्धि वीसम जिन सेव ए॥ जिन सेव च्यारे अर्ध पुष्कर, माहि पच्छिम भाग ए । तिहा मेर विजमाल चिहुं दिसि, विचरता वीतराग ए । चउरासी पूरव लाख वरसा, आउ इक इक जिन तणौ । पाचसै धनुप शरीर सोहै, सोवन वर्ण सोहामणौ ॥ २३ ॥ काल जघन्ये इम जिण वीस ए, हिव उत्कृष्टै भेद कहीस ए । इकसौ सित्तरि तिहां जिणवर कहै, पाचे भरते जिण पाचे लहै।