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शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह २६७ दोइ भरत दोइ ईरवें, दोइ वलि महाविदेह । करमभूमि पट छै इहां, उणहीज नामै एह ॥१२॥दी। दीप इक इक मेरु नै आसरें, करमभूमि तीन तीन । निज निज मेरु थी माडिन, लेखो चिहंदिसि लीन ॥१३॥दी॥ श्रीसुजात जिण पाचमौ, छट्ठउ स्वयंप्रभु ईस । ऋपभानन जिन सातमौ, समरीजै निसि दीस ॥१४॥दी०॥ अनंतवीरिज जिण आठमौ, एच्यारे जिनराय । पूरव धातकीखंड में, महाविदेह रहाय ॥१५शादी०॥ पहिला चिहुं जिण नी परइ, विजय नगर दिसि ठाण । तिणहीज नामें अनुक्रमै, विजय मेरु अहिनाण ॥१६॥दी। नवमौ शूरप्रभ नम, दशमो देव विशाल । इम वज्रधर इग्यारमो, त्रिकरण प्रणमुनिकाल ||१७||दी०|| वारमौ चंद्रानन जिन, पच्छिम धातकी माहि । विचरै च्यारे जिणवरा अचल मेर उच्छाह ॥१८॥दी। एहवौ धातकीखंड ए, परिदखिणा परकार । अठ लख जोयण वीटीयौ, समुद्र कालोदधि सार ॥१६॥दी०॥
ढाल (३) कालोदधि नै पैलै पार ए, बीट्यउ चूड़ी जेम विचार ए। सोले लख जोयण विस्तार ए, दीप पुक्खरवर अति सुखकार ए || सुखकार पुष्कर दीप तीजौ, तेहने आधै वगै । विचि पड्यो परवत मानुषोत्तर, मनुषक्षेत्र तिहा लगे-।।