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शास्त्रीय विचार स्तवन सग्रह
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ढाल (२) अन्य दिवस को० रहनी पाटी कमली नवकरवाली पोथी जोड, ज्ञान ना उपग्रण तणीय आसातनं कीधी होइ । जघन्य थी पुरमढ एकासण आबिल उपवास, अनुक्रम एह आलोयण सुगुरु वताई तास ॥६॥ एजो खडित थायै अथवा किहा ही गमाइ, तौ वलि नव्या कराया दोप सहू मिट जाइ । थापना अण पडिलेल्या पुरमढ तो तपधार, खिरता एकासण ते गमता चौथ विचार ॥७॥ दर्शन ना अतिचार तिहा परम जघन्न, एकासण आबिल अट्ठिम चिहुं भेदे मन्न । आसातन गुरुदेवनी साहमी सु अप्रीति, जघन्य एकासण थी आलोयण चढती रीति ॥ ८ ॥ अनंतकाय आरभ विनास्या चौथ प्रसिद्ध, विति चौरिन्द्री साया एकासण थी वृद्धि । बहु वि ति चौरिंदीय हण्या बि ति चौ उपवास, सकल्पादि चिहु विधि दुगुणा दुगुण प्रकास ॥६॥ उद्दही कुलियावड़ा कीडीनगरा भन, बहु जलोया मक्या दस दस उपवास प्रसंग। वमन विरेचन कृमि पातन आबिल इक एक, जीवाणी ढोलंता दो उपवास विवेक ॥ १० ॥