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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
संकप्पादिक एक पंचिंद्री उपद्रव होइ, दोइ त्रिण आठ दसे उपवास आलोयण जोइ । बहु पचिदि उपद्रव पट अठ ने दस वीस, चिहुं परकारे चढती आलोयण सुणि सीस ॥ ११ ॥ पंचेन्त्री ने दीधै लकड़ी प्रमुख प्रहार, एकासण आबिल उपवास ने छठ विचार । साध समझ लोक समक्ष राज समक्ष, कूडौ आल दीया दुइ चौ पट चौथ प्रत्यक्ष ॥ १२ ॥ दस उपवास दडाया तेम मराया वीस, इक लख असीय सहस नवकार गुणौ तजि रीस । पख चौमास लगि इक त्रिणवस उपवास, अधिको क्रोध करतो आलोयण नहिं तास ॥ १३॥ सृआवड़ि ना दोष कीया बलि थापण मोस, वोल्या वलि उत्सूत्र कीया गुरु ऊपर रोस । करीय दुवालस बार हजार गुणं नवकार, मिच्छादुक्कड़ देई आलावौ बार वार ॥ १४ ॥
ढाल (३) बेकर जोडी ताम, राहनी विण कीधा पचखाण विण दीधां वांदणा,
पड़िकमण विधि पातर ए। अणोझा ने असिमाय तिहा अवधे भण्या,
- इक इक आविल आचर ए ॥ १५ ।।