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धर्मवद्धन ग्रन्थावली
आलोयणा स्तवन
ढाल (१) सफल ससार नी ए धन शासन वीर जिनवर तणौ,
जास परसाद उपगार थायै घणौ । सूत्र सिद्धात गुरमुख थकी साभली,
लहिय समकित्त ने विरति लहिये वली ॥१॥ धर्म नो ध्यान धरि तप जप खप करें,
जिण थकी जीव संसार सागर तरै । दोप लागा गुरू मुखहि आलोईयै,
जीव निर्मल हुवै वस्त्र जिम धोईयै ।।२।। ढोप लागै तिको च्यार परकार ना,
धुर थकी नाम ने अरथ ते धारणा । किणहि कारण वस पाप जे कीजीये,
प्रथम ते नाम संकप्प कहीजिये ।।३।। कीजीय जेह कंदर्प प्रमुखे करी,
दोष ते बीय परमाद सना धरी । कूदता गरवता होई हिंसा जिहा,.
दर्प इण नाम करि दोष तीजौ तिहा ॥४॥ विणसता जीव नै गिनर न करै जिको,
चौथौ उट्टीआ दोष ऊपजै तिको । अनुक्रमै च्यार ए अधिक इक एकथी,
दोप धरि प्रायचित लेड विवेकथी॥५॥