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शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह २८६ जेण सकति सु विकुरवे रे, विविध प्रकारे रूप । सद्गुर कहै छावीसमी रे, वैक्रिय लवधि अनूप ।च॥१८॥ एकणि पात्रे आदमी रे, जीमीवै केई लाख । तेह अखीण महाणसी रे, सत्तावीसम साख ॥च॥१९॥ चूरे सेन चक्रीसनी रे, सघादिक नै काम तेह पुलाक लवधि कही रे, अट्ठावीसम नाम ||चा२०॥ तेज शीत लेश्या बिन्हे रे, तेम पुलाक विचार। भगवती मूत्र मे भाखियौ रे, ए त्रिहुं नो अधिकार ।।च०२१॥ चक्रवर्ति बलदेव नी रे, वासुदेव त्रिण एह । आवश्यक सूत्र अर्छ रे, नहीय इहा सदेह ।।चा२२॥ पन्नवणा आहार गी रे, कलपसूत्र गणधार । तीन तीन इक मिली रे, वारू आठ विचार ॥०॥२३॥ प्रश्नव्याकरण कही रे, बाकी लवधा वीस । साभलता सुख ऊपजे रे, दौलति ह निसदीस ॥च॥२४॥
॥ कलश ॥ सवत्त सतरं स छवीस मेर तेरसि दिन भलैं । श्री नगर सुखकर लणक्रणसर आदि जिण सुपसाउलैं वाचनाचरिज सुगुरू सानिधि विजयहरष विलास ए कहै धर्मवर्द्धन तवन भणता प्रगट ज्ञान प्रकास ए॥२५॥