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________________ - २८८ धर्मवद्धन ग्रन्थावली तीर्थंकर पदवी पामै पनरम लद्धि, __ सोलम सुखकारी चक्रवति पद रिद्धि । वलदेव तणौ पद लहीयें सतरम सार, ___ अड्डारम आखा वासुदेव विसतार ।। १२ ।। मिश्री घृत खीरें मिल्या जेह सवाद, एहवी लहै वाणी उगणीसम परसाद ।' भणियौ नवि भूलै सूत्र अरथ सुविचार, ते कुछग बुद्धी वीसम लवधि विचार ॥१३॥ एके पद भणियै आवै पद लख कोड़ि, ___ इकवीसम लवधी पायाणुसारणी जोड़ि । एक अरथ करि उपजे अरथ अनेक, वावीसमी कहिये वीज बुद्धि सुविवेक ।। १४॥ , ढाल (३) कपूर हुवै अति ऊजलो रे. सोलह देश तणी सही रे, दाहक सकति वखाण । - तेह लवधि तेवीसमी रे, तेज्यो लेश्या जाण ॥१५॥ चतुर नर सुणिज्यो ए सुविचार, आगम नै अधिकार ।च। चवद पूरवधर मुनिवरु रे, ऊपजतां सदेह । रूप नवी रचि मोकले रे, लवधि आहारक एह । च० ॥१६॥ तेजो लेश्या अगनि में रे, उपशमिवा जलधार । मोटी लवधि पचीसमी रे, शीतल लेश्या सार । च० ।। १७ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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