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शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह ए तीने उवटी इहाथी आवै दस ठामें।। थावर विकल तिरी नर माहे उतपति पामै ॥२७॥ पृथिवीकाय आदे देई दश दडक एह । तेऊ वाऊ माहे आवी ऊपजै तेह ।।। मनुप विना नव माहे तेऊ वाऊ वे जावै । विकलिंदी ते दश माहि जावै पूठा ही आवे ।।२८।। एम अनादि तणौ मिथ्याती जीव एकत । वनसपति माहे तिहा रहियो काल अनंत ।। पुढवी पाणी अगनि अनै चौथो वलि वाय । कालचक्र असंख्याता ताई जीव रहाय ।।२।। बेइदी तेरिदीने चोरेन्दी मझारें। संख्याता वरसा लगि रहियो करम प्रकारै ।। सात आठ भव लगता नर तिरजच मे रहियो । हिंव मानव भव लहिने साधनो वेष में गहियौ ॥३०॥ रागद्वप छूट नहीं किम कै छटक बार। पिण छ मन सुध माहरे तुहिज एक आधार ॥ तारणतरण मैं त्रिकरण शुद्धे अरिहंत लाधौ । हिव ससार घणो भमिवौतौ पुदगल आधौ ॥३१॥ तूमन वछित पूरण आपद चरण सामी। ताहरी सेव लही तो मै हिव नव निधि पामी ।। अवर न कोई इच्छुइण भवि तू हिज देव । सूधे मन इक ताहरी होज्यो भव भव सेव ॥३२॥
॥ कलश ॥ इम सकल सुखकर नगर जेसलमेर महिमा दिण दिण । सवत्त सत्तरै उगणतीस दिवस दीवाली तणै ।। गुण विमलचद समान वाचक विजयहरप सुशीस ए। श्री पासना गुण एम गावै धरमसी सुजगीस ए ॥३३॥
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