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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली तेऊ वाऊ दंडक वे तजी रे, वीजा जे बावीस । तिहा थी आया था। मानवी रे, सुख दुख पुण्य सरीस २१ नर तिरजंच असंखी आउख रे, सातमी नरक ना तेम । - तिहा थी मरि ने मनुप हुवे नहीं रे, अरिहंत भाप्यौ एम ॥२२॥ वासुदेव वलदेव तथा वली रे, चक्रवरति अरिहंत । सरन नरक ना आया ए हुवै रे, नर तिरि थी न हुवंत ।।२३।। चौविह देव थकी चवि ऊपजेरे, चक्रवरति वलदेव । वासुदेव तीर्थंकर ते हुवै रे, वैमानिक थी वेव ॥२४॥
ढाल-हैम घड्यो रतने जड्यो खुपो, हिव तिरजंच तणी गति आगति कय अशेष । जीव भम्यो इण परि भव माहे करम विशेष ।। आउ संख्याती जे नर नै तिरजंच विचार । ते सगला तिरजंचा माहै लहै अवतार ||२|| जिण तिरजंचा माहें आवे नारक देव । तेह कयौ पहिली तिण कारण न कहुं हेव ॥ पंचेंद्रि तिरजच संख्याते आऊखे जेह । तेह मरी चिहुंगति माहे जावे इहां न संदेह ॥२६॥ थावर पाच त्रिणे विकलिंदी आठे कहावे । तिहा थी आऊ संख्याती नर तिरजंच में आचें ॥ . . विकल मरी लहै सरवविरति पिण मोख न पाये। तेर वाउ थी आयो तेह नै समकित नावै ॥२७॥ नारक वरजी ने सगलाई जीव संसारै।। पृथिवी आऊ वनमपति माहे लहै अवतारै ।।