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. शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह .. २७१ परजापते इण पाचे ठामे, आवी उपजै देव जी। इण पाचा माहें पिण आगे, अधिकाई कहुं हेव जी ।। १०॥ पू० तीजा सरग थकी मांडी सुर, एकेंद्रि नवि थाय जी। अठम थी ऊपरला सगला, मानव माहि ज जाय जी ।। ११ ॥
ढाल-आज निहजो दोसे नाहलो नरक तणी गति आगति इणपर, जीव भमें संसार । दोइ गति ने दोइ आगति जाणिये, वलिय विशेष विचार ॥१२॥ . संख्यातें आऊ परजापता, पंचेंद्री तिरजच । तिमहिज मनुष्य वे हिज ए, नरकमे जाये पाप प्रपच ।। १३ ॥ प्रथम नरक लगि जाइ असन्नीयौ, गोह नकुल तिम बीय गृध्र प्रमुख पंखी त्रीजी लगे, सींह प्रमुख चौथीय ॥ १४ ॥ पाचमी नरके सीमा सापनी, छट्ठी लगि स्त्री जाय । सातमीये माणस के माछला, उपजे गरभज आय ॥१५॥ नरक थकी आवें बिहुं दंडके, तिरजच के नर थाय । ते पिण गरभज तें परजापता, संख्याती जसु आय ।। १६ ॥ नारकिया नै नरक थी नीसरया, जेफल प्रापति होय । उत्कृष्ट भांगे करते कहु, पिण निश्च नहीं कोय ।। १७ ॥ प्रथम नरक थी उवटि चक्रवति हुवै, बीजी हरि बलदेव । त्रीजी लगि तीरथंकर पद लहै, चौथी केवल एव ॥ १८॥ पंचम नरक नो सरवविरति लहै, छट्ठी देसविरत्ति । सत्तम नरक थी समकित हिज लहै, न हुवै अधिक निमित्त १६
__ ढाल-करम परीक्षा करण कुमर चल्योरे । - मानव गति विण मुगति हुवे नहीं रे, एहनौ इम अधिकार।।
आऊ संख्यातें नर सहु दडके रे, आवी लहै अवतार ।। २० ॥