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भूप)ति) नम(ह) नित नाम(को) प्रता(प) पहु, देख(त) ताही(ही) दुख नाहि(है) कदा(य) जू। पूर(ण) बडे(ई) गुण सेव(के) करें(थे) सुख, वंद(त) तही(ही) बहु लोक (स)मुदा(य) जू । देत(है) बहू(त) सुख देव (सु)गुरु(हि) नित, दोऊ(को) नमै(है) ध्रमसीह (यौ) सदा(य) ज।
साथ ही एक हीयाली भी उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत की जाती है :
हीयाली चतुर कहो तुम्है चुप सु, अरथ हीयाली एहो रे। नारी एक प्रसिद्ध छ, सगला पास सनेहो रे॥ ओल बैठा एकली, कर सगला ई कामो रे। राती रस भीनी रहे, छोडै नहीं निज ठामो रे ।।२।। चाकर चौकीदार ज्यु, बहुला राखै पासो रे। काम करावे ते कन्हा, विलसै आप विलासो रे ।।३।।' जोड़ प्रीति जण जण, बोड़े पिण तिण वारो रे। करिज्यो वस धर्मसी कहै, सुख वालो जो सारो रे ||४||
(जीभ) इसी प्रकार कवि समाज मे 'समस्यापूत्ति का भी विशेष प्रचलन रहा है। काव्यविनोद करने का यह एक सुन्दर तरीका है। समस्या की पूर्ति के लिए प्रसंगोद्भावना करनी पड़ती है। इसमे प्रखर कल्पना-शक्ति की आवश्यकता है।