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( २१ ) कविवर धर्मवर्द्धन ने अनेक समस्याओ की सुन्दर एवं रोचक रूप में पूर्ति की है। उनमे से कई तो संस्कृत मे है। आगे कुछ उदाहरण इस दिशा मे प्रस्तुत किए जाते हैं, जो अतीव सरस एवं रोचक है:
१. समस्या, भावी न टरे रे भैया, भावे कछु कर रे ।। श्रवण भरै तो नीर, मार्यों दशरथ तीर,
ऐसी होनहार कौण मेटि सके पर रे । पांडव गये राज हार, कौरव भयौ सहार,
द्रौपढी कुदृष्टि मार्यो कीचक किचर रे। केती धर्मसीख दइ, सीत विष वेलि वइ,
रावन न मानि लइ जावन कुं घर रे। भावी को करनहार, सो भी भम्यौ दश वार,
भावी न टरत भैया, भावै कछु कर रे । २ समस्या, नीली हरी विचि लाल ममोला । एक समै वृषभान कुमारि,
सिंगार सजे मनि आनिइ लोला । रंग हर्ये सब वेस बणाइ के,
अंग लुकाइ लए तिहि ओला । आए अचाण तहा घनश्याम,
लगाइ झरी कर केलि कलोला । घुघट में ए कर्यो अधरामनु,
नील हरी विचि लाल ममोला । . यह आणंदरामजी नाजर द्वारा दी हुई समस्या की पूर्ति है।
ये उस समय बीकानेर के राज्यमत्री थे ।