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( १६ ) राजमती वारहमासा', 'श्री गौड़ी पार्श्वनाथ छन्द', 'शील रास' 'श्रीमती चौढालिया' एव 'श्री दशार्णभद्र राजर्षि चौपई' आदि रचनाओ के नाम लिए जा सकते है। इतनी अधिक काव्यशैलियों में सफल रचनाएं प्रस्तुत करना कवि की सामर्थ्यका द्योतक है। राजस्थान के कवियो में मुनि धर्मवर्द्धन की यह विशेषता वस्तुतः ही अत्यंत गौरव का विषय है।
पुराने कवियों मे चित्रकाव्य की रचना करने का चाव रहा है। कविवर धर्मवर्द्धन ने भी इस प्रकार की रचनाएँ की है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है :
साधु स्तुति ( सर्व लघु अक्षर ) घरत धरम मग, हरत दुरित रग,
करत सुकृत मति हरत भरम सी। गहत अमल गुन, दहत मदन वन,
रहत नगन तन सहत गरम सी। कहत कथन सत, वहत अमल मन,
तहत करन गण महति परम सी। रमत अमित हित सुमति जुगत जति,
चरन कमल नित नमत धरमसी । देव गुरु वंदना (इकतीसा, तेवीसा सवैया)' शोभ(त) घणी(जु) अति देह (की) वणी(है) दुति,
सूरि(ज) समा(न) जसु तेज(मा) वदा(य) जू । १ इस पद्य के कोष्ठक वाले अक्षरो को छोड़ कर पढने से यह
'तेवीसा' सवैया बन जाता है ।