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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
प्रेम सन धारि नित पहुर परभात र,
विविध जसवास गुण रास वादौ । अमल अखीयात विख्यात एणे इला,
दीपतौ देव जग मांहि दादौ ॥१॥ घाट रिपु थाट जलवाट ओघट घणे,
हणे सहु आपदा हुइ हजूरै । सूरि सिरदार छ सकल सुख सेवकां,
पूर नित कुशल जिनकुशल पूरे ॥२ अधिक घण झाड उझाड अवंगाहता,
__ लसकरा तसकरा पड्या लार। , धींग गच्छराज रो ध्यान मन ध्यावता,
विकट संकट सहु निकट वार ।।३।। वडकती भाजती चूडती वेडीया,
पार उतार जिण विरुद पायौ । ___ तूस सेवक तणा दुख भाजै तुरत,
घरमसी कुशल गुरु नाम ध्यायौ ।।४।।