________________
-
गुरुदेव स्तवनादि . २३१ सकट माहे समरता, दादोजी करें दुख दूर रे लाल । बेडी राखी बूडती, परसिद्ध ए विख्द पडूर रे लाल ॥६॥ सेवता सुरतरु समौ, दिन दिन दौलतिदातार रे लाल। विजयहर्ष वंचित दीय, वंदै धर्मसी वारंवार रे लाल ॥७॥
कुशल गुरु नामे नवनिधि पामै, ध्यावै जेह सूधै मन सदगुरु, दिन दिन शुभ परिणामै ॥१॥ भर दुक्कर अटवी वलि घाट, वैरी जूथ घणामे। कुशल खेम कुशल परसादै, ते पहुंचे निज ठामै ॥२॥ परता पूरण संकट चूरण, चावौ चौरासी गच्छा मैं। धर्मसीह कहै ध्याया धावै, करिवा सानिध कामै ॥३॥
दौलति दाता द्यौ सुख साता, सहुजन मन्न सुहाता राज। जे दिन राता तुझ गुण गाता, ते रहै राता माता राज ॥१॥ दादा दादा जग जस वादा, मोह्या सहु नर मादा राज । टलइ अल्हादा सहु विषवादा, कुशल कुशल परसादा
राज ॥२॥ प्रवहण तार्या कष्ट निवार्या, अटवी माहि उबार्या राज । विरुद संभार्या धर्मसी धार्या, सेवक काज सुधार्या राज ॥३॥